बचपन का प्यार
बचपन का प्यार
छीन लिया यारों ने,तस्वीर हमारी।
लूट लिया गांव ने,तकदीर हमारी।
कैसे पूछे कोई, तशरीफ़ हमारी।
जब ठहरी नहीं, गांव में जागीर हमारी।
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नज़र लगी किसकी,जो छूटी यारी।
पता चला कैसे,जो रुठी प्यारी।
वक्त न बदला, बदली क्यो यारी।
टूट गयी पल में, उम्मीद हमारी।
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बचपन था वो ,या भूल हमारी।
कैसे माने वो थी,स्थूल कटारी।
मान लिया नाजुक थी, फूलों की डारी।
पर मुनासिब न थी, उम्मीद हमारी।
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बस रास्ते अलग हुए, मंजिल न हमारी।
वो भी तो थी हमें, प्राणों से प्यारी।
प्यासे न थे जो बुझे,प्यास हमारी।
उम्मीद है हमें न बुझे,आस हमारी
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आज भी अधरो की हर, मुस्कान हमारी।
जल रही है आज भी,चाहत की चिंगारी।
पर चाह नहीं हम भी बने, सपनों के अधिकारी।
उसी के सपनों में बसी, जागीर हमारी।
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मन को बहला लेगी, तस्वीर तुम्हारी।
नींदों में बसा लेगी,हर नींद तुम्हारी।
मेरे हर सांस की, करती पहरेदारी
जब तक चाहे वो, चला ले सांस हमारी।
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छीन लूंगा उससे,हर दुःख की क्यारी।
बात नहीं कहूंगा मैं, मुख से भारी।
क्योंकि सपनों में बसी है, जागीर हमारी।
हर सांस चलती है, इजाजत से तुम्हारी।