रोज होली है
रोज होली है
ये रंगों की होली
एक बार आती बरस में
इधर होली रंगते
दिखाई देते हैं हर पल में।
सफेद आगोश में छुपे रंग
लाल गुलाल सा बहता खून
गिरगिट सा समाए हैं रंग
पल पल बदलता वक्त पर।
केसरी हरे रंग पर रोज
खेली जाती दंगाई खूनी होली
रंगीन दागों से दगे नेता
पहनते सच्चा सफेद चोला।
काला अंधकार अपराध का
नीला जहर उगलती सियासत
पीले पवित्र वस्त्र की आड़ में
कलंकित होती भक्ति आस्था।
चेहरों का रंग हवश का शिकार
सच में ये दुनिया रंगों में रंगी है
यही होली रोज खेली जा रही है
रंगों की परिभाषा बदल गई है।
