STORYMIRROR

Omdeep Verma

Tragedy

3  

Omdeep Verma

Tragedy

जलती दिल्ली

जलती दिल्ली

1 min
213

पीड़ाएं बहुत है दिल में मेरे 

जो समक्ष आपके रख रहा हूं 

गुजरे कुछ दिनों से 

मैं लफ्जों की कड़वाहट चख रहा हूं 


बातें मेरी थोड़ी तल्ख़ होंगी 

पर सुनना यकीनन सच होंगी 

कलपनाएं ना समझना कोरी 

यह हमारे ही दर्दो का अंश होगी 


अंग अंग है टूट रहा 

नासाज तबीयत मेरे मुल्क की है 

मुआलिज नब्ज ना ढूंढ पा रहे 

जो देखो वो सुलग रही है 


ठंड पता नहीं किसके कलेजे को पहुंची 

सी ऐ ऐ, एन आर सी की लपटों

का छाया पूरे देश में धुआँ 

हालात हद से पार हुए 

बगावत को गोली का आदेश हुआ 


सियाशतबाजो की दाल अच्छी गली 

सर्द मौसम में गर्म सारा माहौल रहा 

बैठे-बैठे जिनके हाथ पैर सो जाए 

आज उनका भी खून खोल रहा 


मौत नाचती सड़कों पर 

माहौल सन् चौरासी (1984)सा बना 

दंगाइयों के हाथ में अस्ला 

जो खाकी पर है तना


अपने घरों में आग लगाकर 

अपनों को ही लूट रहे 

गले लगाने को आतुर है मौत

फिर भी है सिर उठ रहे 


जो लात मां की छाती पर मारे 

क्या वह वतन को चाहने वाला है 

यह लड़ाई सारी हिंदू-मुस्लिम के नाम पर है 

क्या फिर से वही दौर फिरंगी आने वाला है 


सजते बाजारों की वह सड़कें, गलियां 

गुरिल्ला रणभूमि बन गई है 

एकता की मिसाल थी दिल्ली 

आज दंगों की भेंट चढ़ रही है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy