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Omdeep Verma

Tragedy

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Omdeep Verma

Tragedy

जलती दिल्ली

जलती दिल्ली

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पीड़ाएं बहुत है दिल में मेरे 

जो समक्ष आपके रख रहा हूं 

गुजरे कुछ दिनों से 

मैं लफ्जों की कड़वाहट चख रहा हूं 


बातें मेरी थोड़ी तल्ख़ होंगी 

पर सुनना यकीनन सच होंगी 

कलपनाएं ना समझना कोरी 

यह हमारे ही दर्दो का अंश होगी 


अंग अंग है टूट रहा 

नासाज तबीयत मेरे मुल्क की है 

मुआलिज नब्ज ना ढूंढ पा रहे 

जो देखो वो सुलग रही है 


ठंड पता नहीं किसके कलेजे को पहुंची 

सी ऐ ऐ, एन आर सी की लपटों

का छाया पूरे देश में धुआँ 

हालात हद से पार हुए 

बगावत को गोली का आदेश हुआ 


सियाशतबाजो की दाल अच्छी गली 

सर्द मौसम में गर्म सारा माहौल रहा 

बैठे-बैठे जिनके हाथ पैर सो जाए 

आज उनका भी खून खोल रहा 


मौत नाचती सड़कों पर 

माहौल सन् चौरासी (1984)सा बना 

दंगाइयों के हाथ में अस्ला 

जो खाकी पर है तना


अपने घरों में आग लगाकर 

अपनों को ही लूट रहे 

गले लगाने को आतुर है मौत

फिर भी है सिर उठ रहे 


जो लात मां की छाती पर मारे 

क्या वह वतन को चाहने वाला है 

यह लड़ाई सारी हिंदू-मुस्लिम के नाम पर है 

क्या फिर से वही दौर फिरंगी आने वाला है 


सजते बाजारों की वह सड़कें, गलियां 

गुरिल्ला रणभूमि बन गई है 

एकता की मिसाल थी दिल्ली 

आज दंगों की भेंट चढ़ रही है।


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