किसान
किसान
तीन बजे उठकर काम लग जाता है जो
क्या पता उसे मुर्गे की बांग का।
आधी रात तक आंखों में नींद ना होती
क्या मजा उसे हसीन रात का।
हीटर लगा कर सो रहे होते हो तुम
वो ठिठुरती रातों में थर्रा रहा होता है।
जिस वक्त लोगों की मॉर्निंग वॉक होती है
वह खेतों में पानी लगा रहा होता है।
जिसके उगाए अन्न पर दुनिया पलती
कभी-कभी वो खुद भूखा सो जाता है।
मौसम की मार जब कहर बरपाती
मन दुनिया को छोड़ने को हो जाता है।
जल जाती है कभी फसलें पकी हुई
बेवक्त की कभी बरसात मार जाती है।
मिट्टी में मिट्टी होते होते एक दिन
किसान की तकदीर हार जाती है।
गँवार लगता है अन्नदाता तुमको
तुम्हारी नजरों में उसका कोई दाम नहीं।
दिन-रात बस काम ही काम
किसान की जिंदगी में लिखा आराम नहीं।