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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Tragedy

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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Tragedy

ये रात फिर ना हो

ये रात फिर ना हो

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वो अकेले चल पड़ा है

अर्थी कंधे पर लेकर।

इन्सानियत कोसों दूर दुबका

अपनी जान की दुहाई देकर।

हाय! ये अर्थी भी मनहूस ठहरा

कंधा जिसको चार भी न मिले।

आंसू सम्भाले खुद संभले

ज़माने से हमदर्दी का मनुहार भी न मिले।

कोरोना क्या क्या छीना हमसे

कहो इसका आकलन है क्या ?

लाचार करुण आंखे क्या समझे

समय या ज़माने का दोगलापन है क्या।

झुरमुट रो रही रात से लिपट कर

दूर दुखियों की सिसकियाँ

कहीं चूडी टूटते कहीं सिंदूर मिटते

कहीं माँ छुटा, कहीं सुनी हो गयी गोदीयाँ।

डर लगता था अंधेरों से

अब तो दिन में भी जाने क्या हो।

कोई सुबह तो आशाओं की

मनहूस सी ये रात फिर ना हो।


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