सिसक सिसक कर कैसे हाल बताऊं नाथ
सिसक सिसक कर कैसे हाल बताऊं नाथ
सिसक सिसक कर,
कैसे हाल बताऊं नाथ।
लॉकडाउन में अपनी हालत,
कैसे तुम्हें समझाऊं नाथ।
भूख से व्याकुल बैठा हूँ,
बिन खेती बिन तरसा हूं।
आर्थिक तंगी छाई है,
यह कैसी विपदा आई है।
बच्चे मेरे सिसक कर रहे है,
भूखे बैठे बिदक रहे हैं,
क्या क्या हाल सुनाऊं नाथ।
क्या अपना हाल बताऊं नाथ,
यह कैसी आपदा आई है,
जाने यह कैसी विपदा लाई है।
बच्चे भूख से मर रहे है,
दवा दारू को तरस रहे हैं।
चारों तरफ कर्फ्यू छाई है,
यह कैसी रुसवाई है।
कामकाज ने नाता तोड़ा है,
यह प्रशासन का कैसा मुखौटा है।
चारों तरफ पसरा कोरोना है।
वायरस के चक्रव्यूह ने,
कैसे हम को घेरा है।
प्रकृति के आपदा ने,
कैसे हम को घेरा है।
बदहाली मैं सिमटी जिंदगी,
इनसे हमें उबरो नाथ।
लॉकडाउन ने कमर तोड़ दी,
सिसक सिसक कर जिंदगी मोड़ दी।
छोटी बेटी दम तोड़ दी,
रहर की फसल मुंह मोड़ दी।
गइया बछिया घर छोड़ दी,
सिसक सिसक कर,
कैसे हाल बताऊँ नाथ।
कोरोना ने कमर तोड़ दी कैसे
हाल बताऊं नाथ।
