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Manju Umare

Tragedy

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Manju Umare

Tragedy

टुकड़ा टुकड़ा ज़िन्दगी...

टुकड़ा टुकड़ा ज़िन्दगी...

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बंट गई है जो टुकड़ों में ये जिंदगी मेरी

अब उसे खुद हम समेट रहे हैं

नहीं सुलझा पाओगे उलझनों को मेरी

देखो अब तो रंग ज़िन्दगी के बदल रहे हैं

बहुत कोशिश की लड़ते रहे बहुत

खुद से, जमाने से और तकदीर से अपनी

ठोकरें खायीं,गिरे,संभले और फिर गिराए गए

मिला नहीं जिन रास्तों में कुछ 

उन रास्तों को अब हम बदल रहे हैं

बंट गई है जो टुकड़ों में ये ज़िन्दगी मेरी

अब उसे खुद हम समेट रहे हैं

नहीं मालूम अब किस तरफ अब हम जाएंगे

बने रहेंगे या यूं ही चले जाएंगे

रोएंगे,तड़पेंगे देखने भी तरस जाएंगे

वो लोग जिनके लिए सब कुछ किया

बदलें में सिर्फ उन्होंने धोखा दिया

माफ़ कर दिया चलो उन्हें भी

आखिर वो मेरे अपने ही तो कहलाएंगे

तोहफ़ा दिया जो मेरे अपनों ने 

उन झूठे टूटे भरोसे को जोड़ रहे हैं

बंट गई है जो टुकड़ों में ये ज़िन्दगी मेरी

अब उसे खुद हम समेट रहे हैं।



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