नहीं जानना है मुझे...
नहीं जानना है मुझे...
बेझिझक हर बात को कहना कभी
तो सांसों को थामकर रुकना कभी उसका
अपनी ख़ामोशी से कत्ल करना कभी
तो शिकायतों के ढेर कभी लगाना उसका
रेत की तरह सूखा वो रहता कभी
तो बारिश जैसे कभी बरसना उसका
ताकता है एक टक नज़रों से कभी
तो झांककर भी कभी न देखना उसका
ख्वाहिशों के रंगों से सराबोर होना कभी
तो अंधेरों में कभी गुम हो जाना उसका
न मालूम है, न जानना है मुझे कभी।