क्या लिखूं...
क्या लिखूं...
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जो कभी शुरू ही नहीं हुई उस कहानी की बात क्या लिखूं
दिल दिया ही नहीं रब ने उसके जज़्बात क्या लिखूं
लोगों की न जाने कैसे कैसे बन जाती है प्रेम कहानी
मैं तो हकीकत में जीती हूं कैसे प्रेम कहानी लिखूं
जो कभी शुरू ही नहीं हुई उस कहानी की बात क्या लिखूं
जाने कैसे बन गया लैला के इश्क में वो 'क़ैस' मजनू
नहीं सहना है ज़माने भर की वो नफ़रत मैं उसे क्या लिखूं
जो कभी शुरू ही नहीं हुई उस कहानी की बात क्या लिखूं
ना कोई शौक है कि कोई करे आग का दरिया कोई पार
चारों तरफ धोखा है फ़रेब है उस बेवफ़ाई की कहानी क्या लिखूं
जो कभी शुरू ही नहीं हुई उस कहानी की बात क्या लिखूं