फौजी मेरे देश का...
फौजी मेरे देश का...
ना ही मज़हब ना कोई जाति उनकी होती है
इश़्क अपने वतन का वो अपनी रूह में बसाए रखते हैं
अपने लहू से सींच देते हैं जो इस ज़मीं का सीना
वो फौजी मेरे देश के कहलाते हैं.....
होते हैं उनके भी परिवार घर उनका भी होता है
न जाने किस मिट्टी के वो बनकर इस जहां में आते हैं
रात दिन रखते हैं नजर दुश्मनों पर महफूज़ हमें रखने को
वो फौजी मेरे देश के कहलाते हैं.....
कर नहीं सकते उनके कर्ज को कभी हम अदा
वो तो अपने फर्ज को निभाए जाते हैं
तारीफ़ और सम्मान भी छोटे पड़ते हैं जिनके आगे
वो फौजी मेरे देश के कहलाते हैं.....
जब हम अपने घरों में चैन की नींद सोते हैं
वो बारूदों की सुरंगों को पार कर जाते हैं
मौत के खौफ से जहां हम बाहर निकलने से डरते हैं
मौत को साथ लिए हंसकर वो आगे बढ़ जाते हैं
नहीं कर सकते उनके हौसलों को हम लफ़्ज़ों में बयां
वो फौजी मेरे देश के कहलाते हैं.....
जिनके सीने में वतन ही बसता है सदा
धड़कन में भी वतन की हिफाज़त की फ़िक्र रहती है
झुके कभी ना सिर तिरंगे का किसी के आगे
उसकी ख़ातिर चाहे फिर जान ही क्यों ना चली जाए
अपने वतन के लिए जो हंसकर खुद को करते हैं कुर्बान
वो फौजी मेरे देश के कहलाते हैं.....
वो फौजी मेरे देश के कहलाते हैं.....