जीवन का हकीक़त
जीवन का हकीक़त
किराये का घर है, जिसे दुनिया कहते हैं।
एक दिन खाली करना ही पड़ेगा !
फर्क बस इस इतना है कि कोई पहले जाएगा ,
कोई बाद में ,बारी की सबको इंतजार है!
छूट जाएंगे ये रिश्ते -नाते और झूठी शान -शौकत !
धरी की धरी रह जाएगी ये कार और बंगले !
खाली हाथ आये थे खाली हाथ ही जाना है!
माया की नगरी में ये सब जीने का बहाना है।
न कोई अपना यहाँ ,न कोई पराया ,
मतलबी रिश्ते हैं ये सब अपने काम के लिए है बनाया !
न कोई साथी यहाँ ,न कोई साथ निभानेवाला कोई !
बिलखते रह जाओगे साथ कोई नहीं जानेवाला !
लूट मची है ,तर्क है कि अपनों के लिए कर रहे हैं !
अपने के लिए दिन- रात मर रहे हैं !
क्या पता! कि यही अपने शरीर से
प्राण के पंछी उड़ जाने के बाद
पंजर को छूने के बाद खुद को पवित्र करेंगे !
तेरे अपने ही तुझे छूने से कतराएंगे !
जिस रिश्तेदार से गाढ़ी रिश्तेदारी थी
वो अपना औपचारिकता निभाकर
औचक ही निकल जाएंगे !
किराये का घर है यह मकान ,जिसे दुनिया कहते हैं !
एक - एक नये किरायेदार आने पर कमरा खाली करना पड़ेगा !
एक दिन सबको किराये का घर खाली करना पड़ेगा !
