मेरी विनती
मेरी विनती
आहत और गंभीर भी हूँ
देख, देश की हालत से मैं
थोड़ा सा गमगीन भी हूँ
भ्रमित हो रही क्यूँ अपनी जनता
सोच-सोच परेशान भी हूँ
राजनीति जुमलें चलते रहते
उलझे उनमे तुम हो क्यूँ
राजनीति की तकदीर ये
सोच के मैं हैरान भी हूँ
बुद्दि जीवियों के हाथ में सब कुछ
रखते देश की नीव
प्रेम भाव है धर्म हमारा
क्षमा है अपना शील
अतिथियों को भी है देव मानते
यही भारतवासियों की तासीर
समझ ना आता मुझको यारों
भ्रमित हो रहे है क्यूँ
न्याय के लिए हमारा कोर्ट उपस्थित
होओ ना तुम अधीर
सब कुछ आगे अच्छा होगा
विश्वास करो सभी
गायब हो गया बंधुत्व कहीं
जो ना शांति का प्रतीक
धर्म निरपेक्ष है देश हमारा
होती अमन चैन से जीत
भाई-भाई से लड़ रहा
लहूलुहान धरती
अनसठ हो रोड, लाठी माँजते
बंदूक गोली चलती
हाथ जोड़कर विनती करता
छोड़ दो व्यवहार उपद्रवी
रास्ता निकलता प्रेमभाव से
दंगो से होती तकलीफ।।
