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Phool Singh

Tragedy

4  

Phool Singh

Tragedy

बदलते देखा है

बदलते देखा है

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चंद खुशियों की खातिर, हमने 

लोगो को, क्या-क्या करते देखा है 

दिल में लोगो के सूनापन पर 

महफिल में मुस्कुराते देखा है ||


गरीबी से लेकर अमीरी तक 

परिस्थितियों को बदलते देखा है 

उपदेशकों की कतार भी देखी

मेला भ्रम जाल का देखा है ||


वफा के बदले धोखा देखा 

बेवफाई मे कातिल बनते देखा है 

जिन्हे बनाया अन्तर्मन का साथी 

उसे रुलाते देखा है ||


आवाज दबती दाम से कैसे 

लोगो को, मोलभाव भी करते देखा है 

सच को बिकते झूठ में देखा 

लोगो को, एक-दूजे पर हंसते देखा है 


कड़वी है पर हकीकत है 

स्वार्थ में लोगो को बदलते देखा है 

फीके पड़ते हर भाव को 

उम्मीदों को धूल में मिलते देखा है ||


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