बदलते देखा है
बदलते देखा है
चंद खुशियों की खातिर, हमने
लोगो को, क्या-क्या करते देखा है
दिल में लोगो के सूनापन पर
महफिल में मुस्कुराते देखा है ||
गरीबी से लेकर अमीरी तक
परिस्थितियों को बदलते देखा है
उपदेशकों की कतार भी देखी
मेला भ्रम जाल का देखा है ||
वफा के बदले धोखा देखा
बेवफाई मे कातिल बनते देखा है
जिन्हे बनाया अन्तर्मन का साथी
उसे रुलाते देखा है ||
आवाज दबती दाम से कैसे
लोगो को, मोलभाव भी करते देखा है
सच को बिकते झूठ में देखा
लोगो को, एक-दूजे पर हंसते देखा है
कड़वी है पर हकीकत है
स्वार्थ में लोगो को बदलते देखा है
फीके पड़ते हर भाव को
उम्मीदों को धूल में मिलते देखा है ||
