गरीबी
गरीबी
गरीबी इंसान को लाचार बना देती है....
जो दिन ना देखे वो सब दिखाती है
हालात के हालात बदल देती है
उसको एक मजबूर बना देती है
आओ आंखों देखा हाल बताता हूँ
ग़रीबी की दास्तां सुनाता हूँ
लोग देख कर भी कर देते है अनदेखा
ऐ इंसान! तूने नही देखा तो भगवान ने नही देखा
करते चलो भला जिसको ज़रूरत है
साहब! भगवान अँधा नही उसने सब देखा
अजीब सी कहानी बताता हूं
गरीबी की दास्ताँ सुनाता हूँ
दो वक्त की रोटी के लिए इधर उधर भागते हैं
हम शादियों में खाना बुरी तरह फेंकते हैअरे उतना ही लो जितना खाते बने
क्युकी उतना ही खाने के लिए गरीब तरसते हैं
एक अजीब सी दासता.........
दो वक्त की रोटी के लिए कुछ भी बेचते हैं
हमे उनके लिए कुछ करना चाहिए
ना चाहते हुए भी हमे कुछ न कुछ खरीदना चाहिए
हमे समझनी चाहिए उनकी बेकरी
पता नही कौन कब बन जाए राजा से भिखारी।
आंखों देखा हाल..........
क्या रोना क्या धोना, उसी फुटपाथ पे है सोना
दो वक्त की रोटी मिले तो खाना
वरना खाली पेट है सोना।
अजीब सी लाचारी बताता हूं
गरीबी की दास्तां.......
