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Anita Sharma

Tragedy

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Anita Sharma

Tragedy

पुरुष

पुरुष

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पुरुषत्व के आधार पर पुरुष

तिरस्कृत भी हो जाता है

मज़बूत लाख कहलाता वो

अक्सर असहाय खुदको पाता है


वो पुरुष होने का तंज लिए

कितना कुछ अकेले सह जाता है

हज़ारों उम्मीदों के भार तले

उसका भी दमन हो जाता है


पुरुष है तो रो नहीं सकता

ये बचपन से सिखाया जाता है

यौवन की दहलीज़ में चढ़ते ही

ज़िम्मेदारियों में फँसता जाता है


खुल के दर्द बयाँ नहीं करता

वो हर हाल में भी मुस्कुराता है

जीवन के लक्ष्य निर्धारित उसके

वो सहजता से सब निभाता है


नहीं आसान है पुरुष होना भी

ये पीड़ा कौन समझ पाता है

तन मन धन समर्पित करता वो

संघर्ष बाँट तक नहीं पाता है।


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