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Anita Sharma

Abstract Tragedy

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Anita Sharma

Abstract Tragedy

गरीबी

गरीबी

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कौन फ़िक्र करता है कि

उसके हाथ में क्या आया


गरीब तिल तिल के जीता है

मेहनत भर भी ना कुछ पाया


करता दिन रात एक पेट की खातिर

पिसता रहता क़र्ज़ में आखिर


काम दिन भर लग के करता

दर्द लाख हो सब कुछ सहता


मेहनतकश बनकर रहता एक काफिर

भागती ज़िन्दगी का रेंगता मुसाफिर


पूरा करता काम फिर भी आधा पाता

संतुष्ट आत्मा से वो घर को चला जाता


कुदरत का कैसा लेखा जोखा

ना कभी वो ये पहेली बूझ पता


ज़िन्दगी भर होता रहा वो शोषित

कौन कर सका एक गरीब को पोषित


बस रेंगते रेंगते जीवन अपना जीता

फिर मिट्टी में ही जा मिल जाता।


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