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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

हृदय में भरा जहर

हृदय में भरा जहर

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जिनके हृदय में भरा बहुत जहर है

वो ही बोल रहे बाते आज सस्वर है

जिनके दिल में दगा समंदर भर है

वो ही बन रहे आजकल कलंदर है

वो बन रहे आजकल सच्चे मित्र है

दिखावे के जो लगा रहे बहुत इत्र है

कैसे यकीन दिलाऊं, खुद को साखी

आजकल जिंदा नहीं दोस्ती चित्र है

हर जगह दिखते आज स्वार्थी घर है

कर्ण जैसी दोस्ती हुई आज बेघर है

में मित्र को फूल गुलाब समझता रहा,

मित्र ने दिखाया बनावटी फूल-शहर है

आजकल ऐसे दोस्त मचा रहे ग़दर है

जो दिखाते, दिखावे की सुंदर नजर है

न रो, हर मित्र होता न कृष्ण सा नर है

चलता चल तू साखी, हर घट पत्थर है

दोस्ती रख तू बस केवल खुद से ही,

न पायेगा तू धोखेबाजी का जहर है

दुनिया के छलावे ने ही सिखाया है,

हर चिड़िया रखती नहीं बाज-पर है



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