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Charu Chauhan

Abstract Tragedy

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Charu Chauhan

Abstract Tragedy

'भूख'

'भूख'

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गरीब की भूख का होता है अपना एक अलग ही धर्म,

वह नहीं मानती किसी जात पात को, 

वह लगती है जब, बस कोहराम मचाती है।

आँतों की सिकुड़न, 

आँखों तक ना चाहते हुए भी चली आती है, 

और मुँह से निकलती है बस एक आह्ह.....! 


वह बस तृप्त होना चाहती है, 

नहीं समझती सामने रोटी कूड़े की है या कल परसों की बासी,

आधा पेट ग़र भर जाए,

उसी में ऐश समझती है,

पिज्जा, बर्गर, नूडल्स के तो नाम को भी तरसती है। 


सच, गरीब की भूख का होता है अपना एक अलग ही कर्म, 

वह नहीं समझता किसी काम को ओछा,

जानता है खुद को छोटा कर, सिमटकर थोड़ा होना। 

दिल का दर्द आँखों में छिपा, 

वह बस जानता है निभाना, 

और चाहता है बस कल के लिए एक तसल्ली....! 


वह बस काम पाना चाहता है,

नहीं समझता काम छोटा है या भारी,

बस दो पैसे मिल जाए,

और हो जाए उसकी दिहाड़ी,

ज्यादा नहीं मिला तो वह गुड़ खा कर ही पी लेता है पानी।


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