पगडंडी
पगडंडी
काश बन जाए एक पगडंडी,
उन रूखे-सूखे टूटे रिश्तों के दरमियां,
जो बह गए थे दूर,
किसी गलतफहमी के सैलाब में।
काश बन जाए एक पगडंडी,
बेबस माँ और लाचार बेटे के दरमियां,
जो टूट गई थी बिन आवाज़,
नयी उड़ाने भरने के दौरान।
काश बन जाए एक पगडंडी,
क्षणिक दोस्तों के भी दरमियां,
जो रवायत भी क्षण भंगुर हो गयी,
दोस्ती की में लालच मोड़ने के समय।
काश बन जाए एक पगडंडी,
रूठे सगे-संबंधियों के दरमियां,
जो घुट गई थी लिफाफों की सील में,
अब सार्थक भी हो उनकी हर दुआ।
काश बन जाए एक पगडंडी,
चटके दिल के टुकड़ों के दरमियां,
बिखर गए थे जो झूठे वादों के आघात से,
और चहूँ ओर महकता रहे खुशियों का गुलिस्तां।।