मैं पूनम, वो चाँद
मैं पूनम, वो चाँद
मैं बनी पूनम, तो वो चाँद सा बाँहों में उतरा,
अमावस की काली रात में भी, चंदन सा जकड़ा।
अज़ल प्रेम के सागर में गोते लगाते-लगाते...
सावन, भादो और बसंत दोनों पर साथ ही गुजरा।
जहाँ मैं स्वाभिमानी, निडर सी लड़की,
वहीं वो चंचल और भावुकता से पूर्ण लड़का।
हम दोनों में एक दिन और एक रात,
दिशाओं में भी जैसे एक पूरब, एक पश्चिम ।
लेकिन दोनों का मिलाप कराती जैसे कोई संध्या,
अनुनय विनय करती, पुरानी पाती पढ़ती खूबसूरत ऊषा।
प्रेम-पत्र रखें डायरी में, हैं गवाह इस अद्भुत अनुभूति के,
जूही की अधखिली कली, निशानी बनी थी इस इश्क़ की आग की,
समर्पण के साथ औंस की बूँदें मेरे लिए जोड़ना पराकाष्ठा थी तेरे प्रेम की
जज़्बातों की गहराई में समायी हम दोनों की रूह थी।
सुनो प्रिय,
पवित्र प्रेम की परिभाषा तुमसे सीखी,
जीवन में ठहराव का गहना भी तुमसे पाया,
पाने के साथ-साथ, प्रेम लुटाना भी तुमसे जाना,
मेरे कोरे से जीवन में रंगीला हस्ताक्षर तुमने किया।
कटीलीं झाड़ी रूपी सफ़र में,
हरियाली का बीज़ जो तुमने बोया था...
देखो आज हरा भरा हो गया।
तुम्हारे साथ से जीवन में,
काँटों के साथ खुशियों का गुलाब खिल गया।

