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Charu Chauhan

Tragedy

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Charu Chauhan

Tragedy

कौन

कौन

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कौन से दौर की बात है, 

है कौन से जिले की बात? 

बात ही तो होती हर जगह, 

जगह पर रहकर करता कौन काम? 

काम करते बहुतेरे बस प्रभु तेरे जन, 

जन प्रतिनिधि बन रहते वो तो मस्त।

मस्त चारों पहर की रोटी खाता प्यादा एक वह,

वह भी बाजता जैसे, बन किसी का मृदंग।

मृदंग, ढोलक, शहनाई सब एक के ही भाग्य आयी, 

आयी समझ जिसे प्रीति की ना, 

ना जाने वह कभी पीर पराई। 

पराई, जा बिटिया किसी के आँगन कहलाई, 

कहलाई समीकरण दो घरों की, 

की उसने भी जीवन भर रिश्तों की बुवाई। 

बुवाई खेतों की दाँव लग जाती, 

जाती मेहनत की सीमा, कसे आख़िर कौन? 

कौन यहाँ ज़िम्मेदार है, 

है किस-किस घोटाले का शोर?? 

शोर में दब जाती है अक्सर आम जन की पीड़ा, 

पीड़ा दूर करने का आख़िर कौन उठाए बीड़ा? 

बीड़ा लादे जिम्मेदारियों का है क्या कोई हल? 

हल चलाता खेतों में, किसान करता परिश्रम। 

परिश्रम अंत में परिश्रम ही रह जाता, 

जाता धैर्य, हौंसला पल-पल डगमगाता।। 




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