भग्न की कहानी
भग्न की कहानी
यह मेरे भग्न की कहानी है,
बात शीतल हवा की नहीं, रात तूफ़ानी की है।
बहता झरना अच्छा लगता है सबको,
लेकिन यह बात सैलाब के पानी की है
सुनो, यह मेरे भग्न की कहानी है।
बात कुछ पुरानी है,
लेकिन निशान उसके आज भी मेरे दिल पर पैर जमाएं हैं,
निशा की चादर में जो आँखों में थे,
भोर की किरण से सारे के सारे भेद छुपाये हैं।
मुस्कराहट अच्छी लगती है सबको होंठों पर मेरे
लेकिन यह बात ज़ख्मों से रिसते दर्द की है
सुनो, यह मेरे भग्न की कहानी है
बात शीतल हवा की नहीं रात तूफानी की है
सुनो सुनो यह मेरे भग्न होने की कहानी है।
