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Charu Chauhan

Abstract Drama Others

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Charu Chauhan

Abstract Drama Others

मन का शोर

मन का शोर

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अलार्म की ट्रिन-ट्रिन, अलसायी सी आँखें, 

हाथ-पैर रेस के घोड़े की भाँति दौड़ें। 

झट आ जाता है झाड़ू एक हाथ में, 

दूजे में फिनाइल से सना पोंछा।


अखबार वाले का हॉर्न, 

मंदिर में बजती घंटी की ध्वनि, 

टिक-टिक करती घड़ी की सुइयां, 

कुकर की सीटी उफ्फ, तेज़ी से कढ़ाई में चलती कलछी।


कोलाहल प्रत्येक दिशा में इतना गहरा, 

मन का शोर नहीं पहुंच पा रहा कानों तक। 

जुगत है चाय को जल्दी, प्यालों में डालने की, 

पराठें संग खट्टी-मीठी चटनी परोसने की। 


दिन का तीसरा पहर मस्तिष्क में चेतना लाया, 

भीतर का ऊधम, जब असहनीय हुआ, 

इक दफ़ा फिर काग़ज, कलम के जरिए, 

मन का शोर शब्दों की माला बन गया।। 



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