STORYMIRROR

Manju Saini

Romance Tragedy

4  

Manju Saini

Romance Tragedy

चुप रह कर

चुप रह कर

2 mins
343

चुप रह कर भी मैं करती रही प्रतीक्षा

कि आओगे तुम तो कह डालूंगी जज्बात सारे

अपने दिल मे उठे भावों के समंदर को शान्त कर

मैं हो जाऊंगी उन्मुक्त पंछी सी

अपने भावों को लिख डालती हूँ शब्दो में

असहनीय पीड़ा को उड़ेल देती हूँ कोरे कागज पर 

मनोभावों की लड़ियाँ पिरोई हैं अपने शब्दोद्गार में


चुप रह कर भी मैं करती रही प्रतीक्षा

सोचती रही तुम पढ़ पाओगे शब्दो मे उकेरे जज्बात

किंतु मैं रही प्रतिक्षारत ओर तुम समझ ही नही पाए

वही मेरी प्रतीक्षा जैसे धरती गगन एक नही हो सकते

साक्षी रही प्रकृति भी मेरे प्रेम की

मानो शब्दो मे उछाल दिए हो शब्द मैंने कि

प्रतिध्वनि शायद तुम तक जा पाए


चुप रह कर भी मैं करती रही प्रतीक्षा

शब्द रूप में मेरे भाव अपठनीय ही रहे

आशा की किरण को मैने रखा जीवित स्वयं में

सोच यही कि कभी तो पलट कर आओगे मुझ तक

रहूंगी जनजन्मान्तर तक प्रतिक्षारत तुम्हारे लिए

मैने तुम में ही स्वयं को पाया है स्वयं में ही तुमको

तुम्हारे लिए प्रतिबद्ध शब्दो मे भी प्रतिक्षारत भी


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance