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Rajeev Rawat

Tragedy

4  

Rajeev Rawat

Tragedy

वह कौन थी

वह कौन थी

2 mins
285



रात के अंधेरे में जुगनू दिखा रहे थे रास्ते और पागल से झींगुर गा रहे थे गाने-

सामने था खंडहर, मन में उभरा एक डर, हे प्रभू क्या होगा! अब तू ही जाने-

हवा के प्रवेग से हिल रहे थे पत्ते-ऊल्लुओं और रोते हुए सियार की आवाज से थे हक्के बक्के-

सांय सांय की आवाजों से घबराते हुए चाल को किया तेज श्वांसे फूल रहीं थी,

लगभग दौड़ रहा था-

जल्दी जल्दी डर के मारे खंडहर से मुंह मोड़ रहा था-

अचानक जोर से आई आवाज जैसे टूटा हो कोई सीसा-

मैं बड़बड़ाने लगा जोर जोर से हनुमान चालीसा -

आंख खोल कर देखा तो हो गया हक्काबक्का -

सामने फैले हुए बाल, नुकीले नख, बड़ी बड़ी भीभत्स आंखे और सफेद कपड़े पहने एक साया देखकर रह गया भोचक्का-

वह अट्टहास करती हुई बोली-

मैं चुड़ैल हूं तुम्हारा पीऊंगी खून, अभी-की अभी-

मैं एक पल के लिए डरा फिर हंस पड़ा तुम पिओगी खून मेरा कोई बात नहीं लेकिन पहले सुन लो मेरी दास्ताँ , मैं हूं एक लेखक कवि-

जो अपनी भावनाओं, कल्पनाओं और दर्दों बेचकर भी न ला पाया दो रोटी-

छोड़ कर आया हूं इंतजार करती बीमार पत्नी की दुर्बल काया और दूध के लिए तरसती बेटी छोटी-

जिंदगी में कुछ नहीं कर पाया-

सत्य लिखने के और समाज की सच्चाई उजागर करने के चक्कर में बाजार में भी बिक न पाया--

मैं मजबूरी की लाश को ढोते आया हूं-

क्योंकि बिकते हुए बाजार में अपना जमीर बेच नही पाया हूं-

अभी अभी ताजिन्दगी लिखे सारे पन्नों को

कबाड़ी के यहां बेच कर आया हूं लेकिन दो दिन के खाने की जुगाड़ भी न कर पाया हूं-

मरने जा रहा था चलो कुछ तो काम आऊंगा 

जो जिंदा रह कर भी अपनी और घरवालो की न मिटा सका भूंख, शायद तुम्हारी कुछ तो मिटा पाऊंगा-

अब वह स्तब्ध खड़ी चुड़ैल बोली-हम चुड़ैल हैं कोई नेता नहीं हैं जो दो निबाले भी गरीबो के भी छीन लेते है-

हम तो जो उनका ही पीते हैं खून, जो दूसरों का खून पी कर जीते हैं-

रूक गयीं बहती हवायें, मौसम भी सर्द था-

उसकी भयानक आंखों में छलकता मेरी बेवसी का दर्द था-

प्रकृति निस्तब्ध और हैरान सी-

मेरे चैहरे पर मरते मरते जीने की या फिर जीते जी मरने की अजीब सी पहचान थी-

जहां मानव अंतिम श्वांस तक, 

मानव का करते हुए शोषण करता है अट्टहास, वहां यह चुड़ैल होकर भी मौन थी-

मैं खड़ा था स्तब्ध, आखिर मानवीयता की लाश ढोते वह कौन थी--



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