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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy Others

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy Others

कच्ची शराब और चरस गांजा

कच्ची शराब और चरस गांजा

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नगर फतेहगंजपूर्वी में,

आज फिर हुई छापे मारी,

मिशन बनी गिहार बस्ती,

नगर देहात बर्बाद हो रहा, 

चरस गांजा, शराब कच्ची।

नये नये आये थानेदार ,

जैसाकि सब पहले होते रौबदार,

फिर वही अंदाज होता है,

हफ्ता महीना इनाम होता है।

फतेहगंजपूर्वी क्राइम का बन गया अड्डा है,

चरस गांजा कच्ची शराब और होता सट्टा है,

रुकता नहीं अपराध थानेदार बदलता है।

फतेहगंजपूर्वी माफियाओं का बना अड्डा है,

कच्ची शराब जब जान लेती है,

तब तब खूब छापे मारी होती है,

फतेहगंजपूर्वी की गिहार बस्ती है,

चरस गांजा शराब खूब बिकती है।

मगर होता क्या गांव कस्बा तो बर्बाद हैं,

छापेमारी के बाद धर्राटे काटती शराब है,

हर गांव कस्बा क्षेत्र में महीना गुजरता नहीं,

कच्ची शराब से मरता आदमी बैन लगता नहीं,

यह छापेमारी सिर्फ बहाना है,

अपना हफ्ता बंधवाना है,

क्योंकि जब भी कोई नया हुक्म आता है,

पहले छापेमारी कर अपना रंग जमाता है,

धीरे धीरे फिर वही हाल बद से बदतर होते,

सब अड्डे फिर नवाब की खिदमत होते. .

फतेहगंजपूर्वी नगर गिहार बस्ती,

चरस गांजा व्यापार शराब सस्ती,

दो घूंट पीते पौआ फिर लत में घर जाते,

गांव देहात के लोग कच्ची पीकर मर जाते,

मगर शासन प्रशासन पिछले पचास वर्षों में,

कोई न रोक पाया अपनी तिजोरी भर जाते. .

सच तब हो जब यह सब नगर में बैन हो,

नमन जब हो नगर अपराध मुक्त चैन हो. .

सत्यमेव जयते की लड़ाई कौन लड़ता है,

सबका अपना महिना हफ्ता इनाम बंधता है।

आज छापेमारी में शराब बनाने वाले मजदूर गिहार पकड़े गये,

कुछ सिफारिशों पर छोड़े कुछ के चालान भरे गये,

मगर क्या ऐसे शराब चरस गांजा की बिक्री बंद होगी,

जबतक सरकार योजना गिहार बस्ती की नहीं होती,

शिक्षा रोजगार के दौर में विज्ञापित आत्मनिर्भर भारत,

सरकार समाज का कलंक बनी गिहार बस्ती आदम,

समाज में चरस गांजा शराब को लेकर कलंकित हस्ती,

गिहार बस्ती की नहीं सरकार और योजनाओं की होती,

समझ आया जब धरातल उतर जमीं ए हकीकत परखी..

सदियों से कच्ची शराब प्रथा बनी है बंद नहीं होती. .

बांकी खबर छापेमारी की लोग बड़े तकल्लुफ से लिखेंगे,

व्यावसायिक मीडिया और उनके एजेंट पत्रकार बनेंगे..

कोई थानेदार की तानेगा कोई खबर हिसाब की छापेगा,

फिर शांत माहौल हालात वही होंगे जो पहले थे,

हर बार यही होता है जो आज हुआ थानेदार अहले थे


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