बरसात की एक अंधेरी रात
बरसात की एक अंधेरी रात
बरसात की एक अंधेरी रात
बरसात की एक अंधेरी रात थी,
बादलों की गर्जन दामिनी की चमक,
रह रह कर मन में दहशत भर रही थी,
कुछ लोग अपने घरों में बैठे,
बारिश की बूंदों की अठखेलियां देख कर थे,
कहीं हरी चूड़ियों की खनक,
पायल की छम छम, मेहंदी की लाली,
प्रियतम को मदहोश कर रही थी,
कहीं कोई विरहन साजन की याद में,
व्याकुल हो विरह के गीत गा रही थी,
कहीं कोई नई नवेली दुल्हन,
बिस्तर पर करवटें बदल आंसू बहा रही थी,
बरसात की वह अंधेरी रात,
किसी को डरावनी,
तो किसी को सुहावनी लग रही थी,
उस बरसात की अंधेरी रात में,
एक लड़की डरी सहमी भागती जा रही थी,
कुछ आदमखोर दरिंदे उसके पीछे पड़े थे,
सड़क सुनसान थी, इंसानियत शर्मसार थी,
इंसान जानवर बन इंसान को डरा रहा था,
लड़की उन इंसान रूपी जानवरों से,
अपनी अस्मिता की भीख मांग रही थी,
इंसानी जानवर कब,
किसी मजलूम की आवाज सुनता है,
ईश्वर भी अपने बनाए इंसानों से शर्मसार होता है,
तभी अचानक ईश्वरीय चमत्कार होता है,
कुछ कुत्तों का झुंड वहां रक्षक बन आता है,
क्रोध में भरकर अपने दांतों और पंजों से,
इंसानी जानवरों को लहूलुहान कर देता है,
एक मासूम कली को मसलने से बचा लेता है,
आसमान पर बैठा भगवान यह देख, आंसू बहाता है,
यह कैसा समय आ गया है,
इंसान भक्षक और जानवर रक्षक बन गया है,
इंसान अभी कितना इंसानियत को शर्मसार करेगा,
एक रात ऐसी भी आई,
जब इंसान ने नहीं जानवर ने इंसानियत दिखाई।।
