अंतिम विदाई
अंतिम विदाई


अंतिम विदाई
वो शाम अंतिम,
वो बात अंतिम,
वो अंतिम मुलाकात,
तुमसे थी मेरी,
तुमने ही, ख़त लिख,
बुलाया था मुझको,
अंतिम वही ख़त,
लिखा जो था तुमने,
मैं आई थी तुमसे मुलाकात करने,
सखी थीं तुम मेरी,
बुलाया था तुमने,
पढ़ा जब, ख़त तुम्हारा,
रोक पाई न खुद को,
चली आई मिलने,
सब शिकवे भुलाकर,
जब देखा तुम्हें,
स्तब्ध खड़ी ही रही मैं,
तुमने जब देखा नज़रें उठाकर,
आंखों में दिखा पछतावे का आंसू,
इस थीं तुम,अब कैसी हो गई थीं,
जब देखा था तुमको,
तब स्वर्णिम थी काया,
काली घटाओं सी जुल्फें थीं तेरी,
चेहरे पे दिखता था,पूनम का चंदा,
होंठों पे लाली गुलाबों के जैसी,
हिरनी सी आंखों में ,गुऱूर था दिखता,
बातों के ख़ंजर थीं सबको चुभोती,
अहंकार इतना था, दौलत पर तुमको,
रिश्तों को बेंचा ख़रीदा था तुम
ने,
जो बिकता नहीं था झुकातीं थीं उसको,
शहद़ में मिलाकर ज़हर देने की फितरत,
तुममें थी, मैंने समझा नहीं था,
मेरे प्यार को जब तुमने मुझसे था छिना ,
कालेज से थी वह अंतिम विदाई,
तुमने मेरा सब कुछ, मुझसे था छिना,
वह अंतिम मिलन था हमारा तुम्हारा,
मिलीं तुम्हें खुशियां, सेहरा मुझको मुबारक,
वर्षों के बिछड़े आज फिर हम मिलें हैं,
ऐ कैसा शमां है ऐ कैसा है मंज़र,
अंतिम विदाई आज तेरी है आई,
न प्यार पाया, न यारे वफ़ा,
न दौलत मिली, न बिसाले ख़ुदा,
यह अंतिम है क्षण, अंतिम शहर,
यह अंतिम है ख़त, जो तुमने लिखा था,
जिसमें बयां दर्द तुमने किया था,
धोखा न देती, न खंज़र चुभोती,
तो तुमको भी, ऐ दर्द मिलता नहीं,
जो जैसा है करता वही उसको मिलता,
यही सत्य अंतिम,यही कर्म अंतिम,
अब अंतिम विदाई की आई घड़ी है,
हमारा तुम्हारा भी यह अंतिम मिलन है।।