प्रेम की कहानी
प्रेम की कहानी
प्रेम क्या है ?
इक अहसास है,
जज्बातों का सैलाब है,
जो सुनाया नहीं जाता,
जिसमें डूबकर,
ख़ुद को भुलाया जाता है,
प्रेम करने वाले,
डूब जाते हैं,
प्रेम की गहराइयों में,
उस सागर से,
निकलने की,
ख्वाहिश होती नहीं,
खुद को मिटाकर,
ख़ुद ही मुस्कुराते हैं,
प्रेम होता है क्या ?
कहानी इसकी सुनो,
प्रेम सीता ने,
राघव से किया था यहां,
खुद को मिटाया,
की शिकायत नहीं,
प्रेम मीरा ने जिससे ,
किया था यहां,
उसको पाने की,
ख्वाहिश कभी न हुई,
खुद को रूसवा किया,
ज़हर प्याला पिया,
मुस्कुराती रहीं,
यह बताती रहीं,
प्रेम ऐसा करो,
जैसा मैंने किया,
मीरा सबको यही सिखाती रही,
प्रेम राधा का भी,
अनोखा रहा,
दूर रहकर भी,
प्रेम करती रहीं,
कभी चोट राधा को,
लगती थी जब,
दर्द कृष्णा को,
होता था जाने सभी,
ईश्वरीय प्रेम की,
यह कहानी कही,
मानव का प्रेम भी,
यहां वंदनीय था,
कोई सेहरा में,
दर-दर भटकता रहा,
कोई जंगल में धुनी,
रमाने चला,
हमारी बनो,
या बनो तुम पराई,
हमें कभी शिकवा,
न होगा कभी,
प्रेम हमने किया,
प्रेम करते रहेंगे,
प्रेम व्यापारी बनकर होता नहीं,
तुम अमानत किसी की,
बनो तो बनो,
प्रेमिका तुम हमारी सदा ही रहोगी,
प्रेमी पाने की चाहत न करता कभी,
जो पाने की चाहत करने लगे,
उसे प्रेम यहां कोई कहता नहीं,
प्रेम बलिदान देता,
सदा से रहा,
इसलिए प्रेम पूजा,
वंदना बन गई,
प्रेम लैला बनी,
हीर बनकर रही,
प्रेम सीता बनी,
प्रेम राधा बनी,
प्रेम मीरा दिवानी बनी है यहां,
प्रेम करता है जब कोई,
फिर करता ही है,
प्रेम ज्यादा कभी,
कभी कम होता नहीं ।।