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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy Inspirational

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Tragedy Inspirational

एक लम्हा

एक लम्हा

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एक अपने परिवार के लिए समर्पित नारी की कहानी ,

जो उसने अपने जीवन मे गल्ती की वे दूसरे न करे यही प्रेरणा देती हुयी

कि जीवन मे अपना भी अधिकार है अपने लिए खुद जीना सीखे।


एक लम्हा खुद को देना कभी तुम वक्त निकाल कर। 

ख्यालों की कुहस, कुछ बिसरी यादों की धुंध पोंछकर।


उस लम्हे को मैं पा तो सकी न ,पर लगा कहीं खो दिया।

रिस्तों की गहराई मे गोते लगा ,मेरा दिल ही रो दिया।


गिनती रही दिन के घंटे ,घड़ी को देखना ही दिया भुला।

गुजरता गया कुछ यूं ही हर लम्हा, सुकून फिर भी न मिला।


हमारी नजाकत का किस नफासत से आप ने दिया ये सिला।

फिर भी हम कर सके न कोई बात की आप से एक गिला।


हमने अपनी पूरी जिन्दगी ही उनके नाम कुर्बान किया।

क्यों न उन्होंने अपना एक छोटा लम्हा ही हमारे नाम किया।


लम्हा-लम्हा मै सहेजती ,टूट-टूट कर यों विखरती रही।

आज गुजरे हर लम्हे को सजा, मैने अपने को ही सजा दिया।


अपने सु-मन को खुद से कर रफू,तार-तार होने से बचा लिया।

दर्दे दिल के जज्बातों को भूल से भी स्व होठों पे आने न दिया।


एक लम्हा खुद को देना कभी तुम वक्त निकाल कर। 

ख्यालों की कुहस, कुछ बिसरी यादों की धुंध पोंछकर।


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