ग़ज़ल
ग़ज़ल
दिलों की धड़कनें अब भी तुम्हारा नाम लेती हैं
तड़पने का तेरे ग़म में यही ईनाम देती हैं।
अजब का इश्क इनको हो गया है नाम से तेरे
न कहना मानती हैं नाम ये मुदाम लेती हैं।
मुदाम=निरंतर
कभी जब सोचता हूं नाम उनका गीतों में लिख दूं
मेरे लिखने के पहले वो लगा विराम देती हैं।
मेरे मन के शिवाले में अभी भी मूर्ति है उनकी
खुद से क्यों दूर होने का मुझे पैगाम देती हैं।
उनकी झूठी वफाओं का खुलासा करना जब चाहूँ
'अरुण' झूठा मुझी पर वो लगा इल्जाम देती हैं।