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डॉ. अरुण कुमार निषाद

Tragedy

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डॉ. अरुण कुमार निषाद

Tragedy

जिन्‍दगी

जिन्‍दगी

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जिंदगी जिया नहीं है जिंदगी को झेला है

यार तुम ना समझोगे किस कदर झमेला है।


कट रहे हैं दिन कैसे मैं ये कह नहीं सकता

जिंदगी नहीं भ‌ई मजदूर का ये ठेला है।


हम तेरे हम तेरे लोग ऐसा कहते हैं

पर यहां कौन किसका धन का सारा खेला है।


रंग बिरंगी दुनिया के रंग भी निराले हैं

जिंदगी का रस बंधु बहुत ही कसेला है।


हंस रहे हैं लव लेकिन दिल धधक रहा है ये

क्या करूं 'अरुण'अब मैं मन बहुत अकेला है।



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