लव जिहाद
लव जिहाद
अजीब होता जा रहा है अब तो, जिन्दगी का लिहाज,
प्यार भी अब पावन न रहा, हो गया यह “लव जिहाद”।
इश्क के मापदंड भी गये बदल, अजीब ही है ये फसाद,
“प्यार” प्यार न रहा, अब तो इश्क हो गया है जिहाद।
जाने किधर जा रहे हैं, जाने क्यूँ कलुषिता उकसा रहे हैं ?
मजहबी चोगा पहन कर, जवान लड़कियों को फँसा रहे हैं ?
गाँव गाँव, शहर शहर, फैल रहा इश्क में धोखे का जहर,
हर ओर हो रहा अस्मिता का हनन, गाँव गाँव, शहर शहर।
एक सवाल उन लड़कियों से, जो बहक जाती हैं प्यार में,
पाल पोष कर बड़ा करते माता पिता, बिगड़ जाती दुलार में।
छोड़ कर माँ बाप का घर, चली जाती है किसी के भी साथ
प्यार में हो जाती पागल, थाम लेती है किसी का भी हाथ।
बीता दिए जिस घर में, जिन्दगी के अठारह उन्नीस साल,
उसी घर को उजाड़ देती, माँ बाप का हाल करती बेहाल।
किसी के भी प्रेम जाल में, करती है माँ बाप का सर नीचा,
भूल जाती वह वक़्त, जब माँ बाप ने था प्यार से सिंचा।
क्यूँ “निर्भया” को होता भय, “श्रद्धा” का होता मान मर्दन ?
क्यूँ “दामिनी” पड़ती कमजोर, क्यूँ अस्मिता का होता हनन ?
अजीब सी है यह मानसिकता, अजीब है यह “लव जिहाद”,
क्यूँ करते रहते हैं बलात्कार, इश्क की आड़ में करते बर्बाद।
किसे दोष दूँ, किसे मैं समझाऊँ, सभी तो हैं पढ़ी लिखी,
किसी को कुछ समझाओ तो, होना पड़ता खुद को दुःखी।
पड़कर झूठे प्यार में, करती है पूरे परिवार को अपमानित,
भाग जाती है किसी के भी प्यार में, बिना जाने हित अहित।
बड़ी चिन्ता का विषय है आज, लानी है समाज में चेतना,
“लव जिहाद” का ये बढ़ता फंदा, देता है ह्रदय को वेदना।
बॉलीवुड का यह बढ़ता प्रभाव, सोचने की शक्ति करता क्षीण,
आधुनिकता के मोह पाश में, सोचने की शक्ति हुई विलीन।
पर अब वक़्त आ गया है, इन बच्चियों को समझना होगा,
बात हाथों से निकल जाए, उसके पहले इन्हें संभलना होगा।
अपना भला बुरा अब, इन्हें खुद हर हाल में समझना होगा,
आधुनिकता की चकाचौंध से, इन्हें अब खुद ही बचना होगा।