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Minal Aggarwal

Tragedy

4  

Minal Aggarwal

Tragedy

एक परी की कहानी

एक परी की कहानी

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परियों की कहानी 

क्या सुनाऊं 

मुझे तो कई बार 

यह लगता है कि 

मैं एक परी हूं जो 

परीलोक से भटक कर 

इस दुनिया में आ गई है 


न जाने क्या अपराध हुआ होगा 

उस परी के हाथों जो उसे 

इस अंजान दुनिया में 

अंजान लोगों के बीच 

ऊपर आसमान से नीचे जमीन पर 

पटक दिया गया 


जंगल जंगल 

कितना भटकी थी वह भूखी प्यासी 

न जाने कितने दिनों,

महीनों और बरसों तक 

कभी गूंजती हुई आवाजों

तो कभी एक गहन खामोशी के 

बीच रहती थी वह 


उसे किसी की कोई बात समझ नहीं 

आती थी 

किसी भाषा का उसे ज्ञान 

नहीं था 

वह तो बस प्रेम की भाषा जो 

आंखों से बयां हो जाती है को 


सुन सकती थी 

देख सकती थी और 

समझ सकती थी लेकिन 

इस 'प्रेम' नाम के शब्द से तो 

इस दुनिया के लोगों का 

लगता है कोई वास्ता ही नहीं था 


उस परी को इस धरती पर भेजने के पीछे 

क्या मकसद छिपा है

यह उसे आज तक समझ नहीं 

आया 

उसके पंख कटे हैं 

एक लंबा समय व्यतीत होने के 

कारण 


वह उड़ना भूल चुकी है 

अपने घर का रास्ता उसे याद 

नहीं आता 

वह परेशान है 

मायूस है

तंग आ चुकी है कि 

अब यहां की पथरीली जमीन पर 

उससे चला नहीं जाता 


वह जिंदगी के इम्तिहानों से 

बुरी तरह से उकता चुकी है 

वह यह स्वीकार कर चुकी है 

यह मान चुकी है 

इसकी घोषणा करती है कि 

वह हर मोर्चे पर इस जिंदगी की 

जंग हार चुकी है 


वह जीतना नहीं चाहती 

उसे सरलता की तलाश है 

जटिलता की नहीं 

वह जैसी कभी थी 

वैसी ही अपनी आखिरी 

सांस लेने तक 

रहना चाहती है 

वह बदलना नहीं चाहती 


इस दुनिया के रंग में खुद को

रंगना नहीं चाहती 

वह अच्छी से बुरी बनना नहीं चाहती 

वह एक परी थी 

एक कली थी 

एक फूल थी 

कोमल सी


सकुचाई सी

गंगा की पवित्र एक निर्मल 

धार थी 

वह जैसी थी 

उसे वैसा ही रहने दो 

उस पर इतनी कृपा कर दो 

उसे परीलोक के द्वार तक न

पहुंचाओ पर 


इस पृथ्वी लोक पर उसे अपने 

मुताबिक चंद सांसें जीने दो।


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