होड़
होड़
पानी में जलीय जीव,आकाश में पंछी
धरती के सब जीव और इंसान
किसको नहीं है तृष्णा ?
तृष्णा उसकी जो है तो पास
फिर भी जिसकी है हमेशा आस
खुद को पाकर भी न खो
जाने का अहसास
खुद को जिंदा रखने की आस
खुद को सबसे आगे रखने की प्यास
कभी ख़ुद जीत कर तो कभी
दूसरों को किसी भी तरह हरा कर
सबसे आगे निकल जाने की आस
इन्सानों की इस भीड़ में
काश याद रख लेते हम सब,
कि हर एक की है अपनी
शख़्सियत ख़ास
जिसमें से एक है अपनी,
तो दूसरी है ज़माने के साथ साथ
बदले हम अब उस ख़ास को,
बनाएँ एक आम इन्सान,
जिसे जीने के लिए चाहिए
बस रोटी, कपड़ा और मकान
फिर क्यों है ये होड़?
जो मचा रही है कत्ले आम ,
बिना अस्त्र- शस्त्र के कर दिया
जिसने सबको बेजान,
जबकि जीने के लिए सिर्फ़
वही तो थी गुहार
वही रोटी, कपड़ा और मकान
वही रोटी, कपड़ा और मकान ।