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Usha R लेखन्या

Abstract

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Usha R लेखन्या

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लगता है बहुत खुश हैं

लगता है बहुत खुश हैं

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लगता है बहुत खुश हैं हम, क्योंकि ज़िन्दग़ी में कुछ ख़ास ज़द्दोज़हद नहीं

फिर क्यूँ लगता है कि सबकुछ तो है पर ज़िन्दग़ी कुछ ख़ास ज़िन्दग़ी नहीं

बहुत बार, ज़ोर ज़ोर से हँसने का मन करता है, फिर देखते हैं हँसाने वाला कोई नहीं

सब हैं यहाँ, घर है, परिवार है, मगर पता नहीं क्या नहीं, जिसकी कमी कभी जाती नहीं

जिसके लिए अपने जीवन को, अपनी तमन्नाओं, और आदतों को बदल दिया हमने

आज वही हरवक्त क्यूँ बदला बदला लगता है, और वजह जिसकी पता नही

जो समझ चुका था हमें पूरी तरह से, आज वही हमें समझता कुछ नहीं


लगता है बहुत खुश हैं हम, क्योंकि ज़िन्दग़ी में कुछ ख़ास ज़द्दोज़हद नहीं

जिसके पीछे नहीं दौड़े कभी हम, उसी के कारण आज मन दुखता है हमारा

किसी भी चीज़ को पाने के लिए की जाती है मेहनत, यही दस्तूर था हमारा

उसी राह पर चलते चलते आज थक गए हैं या नहीं, ये भी पता नहीं

नहीं को निकालें कैसे अपने ज़हन से, इसी ने संभाला है हमेशा कहीं न कहीं


लगता है बहुत खुश हैं हम, क्योंकि ज़िन्दग़ी में कुछ ख़ास ज़द्दोज़हद नहीं

कौन सी बात दर्द देती है हमें, अब तो ये भी पता नहीं

न कोई ग़म, न खुशी महसूस होती है अपने लिए, कहीं यही ज़माने का दस्तूर तो नहीं? 

अपने काम में समाहित हो, भूल जाते हैं हर दर्द को, ऐसी हमारी फ़ितरत तो नहीं

 लोगों से मिलना, बात करना बहुत पसंद था, लेकिन अब, खुद से भी बात करके चैन मिलता नहीं ।

लगता है बहुत खुश हैं हम, क्योंकि ज़िन्दग़ी में कुछ ख़ास ज़द्दोज़हद नहीं ।

                                


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