गणतन्त्र बनाम गन तन्त्र
गणतन्त्र बनाम गन तन्त्र
हँस रहा ज़माना, चल रहे खंज़र
धूल में मिलाने को आतुर, देश और देशवासियों का मंज़र
दूसरों से क्या जिरह जब अपने ही हों ज़बर
हँस रहा ज़माना, चल रहे खंजर
न्याय कानून इंसाफ़ सब रहे ताक़
कब ख़त्म होगा यह देशविद्रोह का दाग़
किसका भला, किसका काम, किसका नाम
देश हो रहा बदनाम, बस यही एक इल्ज़ाम
हँस रहा ज़माना, चल रहे खंज़र
धूल में मिलाने को आतुर, देश और देशवासियों का मंज़र!
ध्वज की गरिमा बनी रहे, यह है हमारा सम्मान
न भूलो इसने हमें जो दिया है, उसे आज नहीं पाना आसान
अपने देश के ध्वज को रखा सदा शिरोमस्तक
पर उसे जब उखाड़ने लगें, तो क्यों न हम सब बने रक्षक?
हँस रहा ज़माना, चल रहे खंज़र
धूल में मिलाने को आतुर देश और देशवासियों का मंज़र!
हो देश सबको प्रिय, देश की प्रतिष्ठा और सम्मान
हम क्यों भूल जाते हैं कि यही है हमारा मान और अभिमान
क्यों धूल में मिला देते हैं अपनी और इस मिट्टी की साख़
हँस रहा ज़माना, चल रहे खंज़र
धूल में मिलाने को आतुर, देश और देशवासियों का मंज़र!
आसां है बहुत दुश्मन से लड़ना, लेकिन यहाँ तो घर में ही बैठे हैं कई साँप
जो करे देश को प्यार और दुलार, वह इस आतंक को देख कैसे न हो बेकरार
नहीं बस में एक अदनादमी के, जो बस कर रहा खूँ के आसुओं में गुज़ार
नेता, अभिनेता सब को है अपने नाम से ही प्यार
फ़िर यह अदनादमी न्यायार्थ किसका करे इन्तज़ार
हँस रहा ज़माना, चल रहे खंज़र
धूल में मिलाने को आतुर देश और देशवासियों का सारा मंज़र!