फूल- एक संस्मरण
फूल- एक संस्मरण
आज परीक्षक बन परीक्षा भवन की खिड़की से
अचानक जब देखा तो लगा कि ये
नीले, पीले, लाल, गुलाबी, सफ़ेद फूल,
हरे-हरे पत्तों पर बिखरे, आकर्षित करते फूल
पुकार रहे अपनी छटा लिए, आओ देखो हमें, हम हैं प्यारे -प्यारे फूल
बगिया में हैं पौधे, पत्ते और डालियों पर झूला झूलते ये सुन्दर फूल
लेकिन इनको पसंद आने वाले,
अपनी किलकारियों से कलरवित करने वाले
अभी हैं अपने-अपने घरों की चार दीवारी में बन्द फूल
आधी छुट्टी की घंटी से भर जाती थीं जो राहें
अब केवल झड़े पत्तों से भरी हुई इन सब फूलों की आहें
जो कभी खेलते-कूदते, दौड़ते-गिरते-संभलते,
झूला झूलते, वे अभी हैं घरों की चार दीवारी में बन्द फूल
है आस इन नीले, पीले, गुलाबी, सफ़ेद फूलों की तरह
वे मजबूरी को भगा जल्द घरों से बाहर आ खिल उठेंगें,
मुस्कुराएँगें कूदेंगें, खेलेंगें जिन्हें देख,
हम कभी इधर इठलाएँगें कभी उधर इतराएँगें
नीले, पीले, लाल, गुलाबी, सफ़ेद
फूल, हरे-हरे पत्तों पर बिखरे, आकर्षित करते फूल
पुकार रहे अपनी छटा लिए, आओ देखो हमें, हम हैं प्यारे -प्यारे फूल!