सफ़ेद चादर
सफ़ेद चादर
सफ़ेद चादर सी वह उजली रात
जिसमें चाँदनी ने दिया हो तन्हाई का आगाज़
जिसे देख मन में आ जाए कोई बात
वह ख़ामोशी जिसमें सुनाई दे हर एक आवाज़
कभी झिंगुर की, तो कभी पंखे की चाल
कभी बाहर से जाती हुई किसी गाड़ी की आवाज़
सफ़ेद चादर सी वह उजली रात!
जिसमें चाँदनी ने दिया हो तन्हाई का आगाज़
उजाला चाँद और चाँदनी सब हो एक साथ
तो क्यों न मन करे लिखने को कोई बात
जिसमें रंग हो नूर हो और हो फूलों की बारात
जिसे पढ़, मन कहे वाह! यह सफ़ेद चादर सी उजली रात
जिसमें चाँदनी ने दिया हो तन्हाई का आगाज़
जिसके होने से लगने लगे कुछ ख़ास-ख़ास
जिसके न होने से मन होने लगे उदास-उदास
सफ़ेद चादर सी वह उजली रात
जिसमें चाँदनी ने दिया हो तन्हाई का आगाज़!