दीदी
दीदी
याद आती है वह दीदी के होठों की मुस्कान।
सिहर जाती है रूह यह सोचकर।
कि थी तो वो भी हमारी जैसी ही एक जान।
फिर क्यूं कुचल दिया उन्हे यूं ऐसे कूड़ा समझकर।।
क्या यही खता की थी उन्होंने, कि जन्म ले लिया यहां।
सुशोभित किया है जिस धरा शिरोमणि को अनेकों महापुरुषों ने अवतरित होकर।
यूं ही कैसे धूमिल कर दिया इन दरिंदो ने,किया है उस वसुधा का अपमान।
रोयी है उस मां की कोख और शर्मिंदगी से झुका है उस बाप का सिर ।।
क्यूं पूजते हैं वे दरिंदे शक्ति को,जब दे नहीं सकते एक नारी को उसके हिस्से का सम्मान।
रुंध आता है गला आपकी हालत को महसूस कर।
आखिर आपका भी तो था हक कि अपनी काबिलियत के बलपर छू लें आसमान।
पर किस्मत ने दिया धोखा, पड़ गई आपके ऊपर उन दरिंदों की हैवानी नज़र।।
पर परेशान मत हो दीदी, व्यर्थ नहीं जायेगा आप जैसों का बलिदान।
वादा है हमारा आपसे कि, हम सब मिलकर ।
बनाएंगे ऐसा हिंदुस्तान।
जहां हर बहन बोलेगी निर्भय होकर,
भैया !आप रहने दो
मैं आती हूं वापस अकेली बाहर जाकर।
