ठंड
ठंड
ठंड भी कितना है सताती
जब दोपहर बाद भी धूप नहीं आती
हड्डियों को ठिठुरन से कंपकंपाती।
जब भी यह ठंड आ जाती।।
बच्चों के चेहरों पर खुशियां ये लाती
जब अखबारों में छुट्टियों की खबर है आती
मां बड़े लाड़ से सर्दी के पकवान है खिलाती
पर इसी कारण कईयों की जान भी है जाती।।
पूरी दुनिया क्रिसमस पर संता से कुछ ना कुछ मांगती
पर हमें जरूरत ही क्या है, माता पिता के रूप में ईश्वर की हुई है उत्पत्ति
हम चैन से क्रिसमस और नए साल पर मना लेते हैं छुट्टी
क्यूंकि कहीं दूर सरहद पर कोई हमारे लिए ठंड और दुश्मनों को को दे रहा होता है चुनौती।।
और कहीं दूर हमारे किसानों की मेहनत है रंग लाती
जब खेतों में अनगिनत फसलों कि बालियां है लहलहाती
जहां की धरा पर अनेकों नदियां और वन्य जीव है कलरव करती
बड़े नसीब वालों को जिंदगी है यहां मिलती।।
