STORYMIRROR

Amrita Singh

Tragedy

3  

Amrita Singh

Tragedy

कश्मकश

कश्मकश

1 min
247

ना जाने कैसी ये कश्मकश है, 

उदास हूँ, हैरान हूँ,

परेशान हूँ

दुनिया की तकलीफ से !


दुनिया मे इस कदर

परेशानियों का, 

सैलाब सा

उमड़ा हुआ है 


जन-जीवन त्रस्त हो गया, 

कितनो के परिवार

तबाह हो गए 


कितने अपनों से हमेशा के लिए

दूर हो गए 


कितनो के रोजगार

छीन गए 

कितनो को रोटी नहीं

मिल रही 


चारों तरफ अफरा तफरी

मची है 

अमीर हो या गरीब हर तबका

परेशान है। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy