STORYMIRROR

Nalanda Satish

Abstract Tragedy

4  

Nalanda Satish

Abstract Tragedy

तरक्की

तरक्की

1 min
265

वतन की तरक्की का आलम न पूछो

श्मशानों में भी लाशो की कतारें लगा गए


इस भीड़ में खो गए हैं हम सभी

इंसान को जिंदा देखे जमाने गुजर गए


एक जुनून था अफसानों को हकीकत में बदलने का

अफवाहों के जंगल से नग्मे स्वर्ग सिधर गए


चाँदनी रातो में भी सुलगता रहा बदन

पग पग पर जकातो के जो जखीरे लगा गए


दम घूंट रहा है सांसो की दादागिरी से

हवाओं तुमने झरोखों पर पहरे जो लगा दिए


हीरा समझकर बेशक़ीमती, पत्थर जड़ दिया

न जाने कैसे जहनो पर हमारे पर्दे पड़ गए


स्वर्णिम भविष्य की चाह में ' नालन्दा'

बद से बदतर हालात में पहुंचाए गए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract