अक्सर
अक्सर
मैं अक्सर पूछती उससे कि
क्या लगती हूँ मैं तुम्हारी
और वो सुनकर टाल जाता था..
वो उसका नजरें चुरा कर
खामोशी से देखना मुझे
और मदमस्त सी मुस्कराहट
लाना होंठों पर,
मैं शरमा के देखती और
अक्सर पूछती उससे कि
क्या देखते हो तुम ऐसे
और वो सुनकर टाल जाता था..
वो शाम होते ही
मेरा हर रोज सज-संवर
कर छत पे जाना
और उसका टकटकी लगा कर
मेरी ही छत की ओर निहारना
अक्सर पूछती उससे कि
कुछ कहना था क्या तुमको
और वो सुनकर टाल जाता था..
वो कॉलेज के लिए घर से मेरा निकलना
और उसी समय उसका भी अपना घर छोड़ना
फिर एक ही बस में सफर करना
मेरे साथ की सीट का खाली होना
और मेरा इशारा पाने के बाद ही
उस पर उसका बैठने की हिम्मत जुटाना
फिर यकायक बस के डाँवाडोल होने पर
मेरा हाथ उसके हाथ से अचानक छू जाने पर
एकाएक उसका अपना हाथ पीछे हटा लेना
मैं पूछती क्या हुआ तुमको
और वो सुनकर टाल जाता था..

