सच
सच
जिसे पाने की कभी ख्वाहिश थी
आज उसे खो देने का डर नहीं
हाँ, माना कि थोड़ी उलझी सी हूँ
पर कायर नहीं
थक चुकी हूँ मैं
अंजान मोड़ पर खड़े खड़े
जो आज हमारा सच है
उसी सच से लड़ते लड़ते
खुद को दर्द और तुम्हें घबराहट से
लो आज आज़ाद कर दिया,
नहीं जानती मैं
कि कौन आबाद है
और किसे बर्बाद कर दिया,
ये आँखें आज नम नहीं
हाँ , मगर इनमें पानी कम नहीं
ये आँसू जम से गए हैं,
इनमें बहने का अब दम नहीं
मेरी आँखों मेंआए आँसू को
मेरी मुस्कान छुपा देती है
वो दिन गए, जब तुम कहते थे
कि मेरी आँखें सब बयाँ कर देती हैं!