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saru pawar

Tragedy

4  

saru pawar

Tragedy

आखिर क्यों

आखिर क्यों

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ब्याहा क्यों मुझे बाबा मेरे

कर दिया क्यों पराया

 बोझ थी में क्या इतना बडा

धकेला अंधे कुऐ में मुझे

अंजान लोग ,अंजान घर है


अंजान में हूँ इस देहलिज में

संतान तो मे भी थी

आपकी लाडली थी

आपके हि आंगन में पली थी


खिल रही थी ,बढ रही थी

 कली से फूँल बन ही रही थी

 क्यों तोड मुझे फेंका

किसी और आंगन में


मूर्झा गई ना ?

मसली गई ना ?

 जख्मी हूँई में

पल पल रोई में


  सेहना सकी और

 हार गई में

 रूक्सत जो तेरे द्वार से हुँई में

लाश बन कर हि जैसे जी रही में

आखिर क्यों ब्याह दी में ?


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