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Ajay Singla

Classics

4.1  

Ajay Singla

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रामयण२२;दशरथ का देह त्याग

रामयण२२;दशरथ का देह त्याग

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निषादराज जब लौट के आए

देखा सुमंत्र बैठे हैं वहीँ

निषाद को देखा आते अकेला

गिर पड़े कुछ सुध बुध न रही |


सुमंत्र दिखते बहुत व्याकुल

घोड़े भी हिनहिना रहे

बार बार उस ओर वो देखें

जिस तरफ थे राम गए |


निषादराज ने सुमंत्र को

समझाया, रथ पर बैठाया

चार सेवक कर दिए साथ में

सकुशल अयोध्या उन्हें पहुँचाया |


दिन बिताया पेड़ के नीचे

महल में जाते सकुचाएं

रात हुई प्रवेश किया

कौशल्या के पास आए |


राजा वहां पड़े जमीं पर

राम राम का जाप करें

राम बिना देखा सुमंत्र को

मूर्छित होकर वो गिर पड़े |


कंठ में आ गए प्राण राजा के

विलाप करें रानी सारी

कौशल्या धीरज बँधातीं 

व्याकुल सब नर और नारी |


राजा कथा कहें कौशल्या से

श्रवणकुमार, अंधे तपस्वी

पिता उनके मुझे शाप दिया था

मिल रही सजा मुझे उसकी |


राम राम कहते उन्होंने

त्यागा शरीर, वो स्वर्ग चले

अयोध्या में मातम छा गया

रानी सब विलाप करें |


सुबह मुनि वशिष्ठ आए और

नाव में तेल था भरवाया

शरीर राजा का रख दिया उसमे

फिर दूतों को था बुलवाया |


भरत को लेने भेज दिया, कहा

कोई बात न बतलाना

बस कह देना गुरूजी ने बुलाया

मृत्यु की बात छुपा जाना |


भरत जी को अपशकुन हुए

भयंकर सपनें उनको आएं

दूत जो पहुंचे ,तुरत चल दिए

शत्रुघ्न भी साथ जाएं |


नगर पास पहुंचे देखें हैं

व्याकुल सब हैं नर नारी

कैकई ने सुना भरत आ गए

मन में उनके हर्ष भारी |


आरती लेकर गयीं द्वार पर

अंदर उनको ले आयीं

भरत पूछें पिता कहाँ हैं

कहाँ राम लक्ष्मण भाई |


गले से भरत को लगा कर बोलीं

मंथरा ने पूरी की मेरी आस 

अयोध्या के अब तुम राजा हो 

राम को भेज दिया वनवास | 


पिता की मृत्यु सुन व्याकुल हुए 

माता को बोले कड़वे वचन

तूने कुल का नाश किया है

मारा क्यों नहीं मुझे, होते ही जन्म |


इतने में सज धज करआई

 वो कुबड़ी मंथरा वहां

शत्रुघ्न ने लात मारी उसे

खून बह रहा जहाँ तहाँ |


बाल पकड़कर खींचा उसको

आँखों से उसके आंसू बहे

रोक दिया शत्रुघ्न को भरत ने 

दोनों कौशल्या के पास गए |


माँ के चरणों में सर रख कर

धिक्कार मुझे है, भरत कहें

मेरे कारण अनर्थ हुआ सब

सजा क्यों सीता राम सहें |


कोमल वचन बोलीं थी माता

दोष नहीं मैं दूँ किसी को

होनी को कौन टाल सका है

कहते हैं भाग्य इसी को |


अगले दिन मुनि वशिष्ठ आ गए

भरत को वो देते हैं ज्ञान

स्नान कराया राजा की देह को

संस्कार किया ,सहित सम्मान |


 









 



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