रामयण२२;दशरथ का देह त्याग
रामयण२२;दशरथ का देह त्याग
निषादराज जब लौट के आए
देखा सुमंत्र बैठे हैं वहीँ
निषाद को देखा आते अकेला
गिर पड़े कुछ सुध बुध न रही |
सुमंत्र दिखते बहुत व्याकुल
घोड़े भी हिनहिना रहे
बार बार उस ओर वो देखें
जिस तरफ थे राम गए |
निषादराज ने सुमंत्र को
समझाया, रथ पर बैठाया
चार सेवक कर दिए साथ में
सकुशल अयोध्या उन्हें पहुँचाया |
दिन बिताया पेड़ के नीचे
महल में जाते सकुचाएं
रात हुई प्रवेश किया
कौशल्या के पास आए |
राजा वहां पड़े जमीं पर
राम राम का जाप करें
राम बिना देखा सुमंत्र को
मूर्छित होकर वो गिर पड़े |
कंठ में आ गए प्राण राजा के
विलाप करें रानी सारी
कौशल्या धीरज बँधातीं
व्याकुल सब नर और नारी |
राजा कथा कहें कौशल्या से
श्रवणकुमार, अंधे तपस्वी
पिता उनके मुझे शाप दिया था
मिल रही सजा मुझे उसकी |
राम राम कहते उन्होंने
त्यागा शरीर, वो स्वर्ग चले
अयोध्या में मातम छा गया
रानी सब विलाप करें |
सुबह मुनि वशिष्ठ आए और
नाव में तेल था भरवाया
शरीर राजा का रख दिया उसमे
फिर दूतों को था बुलवाया |
भरत को लेने भेज दिया, कहा
कोई बात न बतलाना
बस कह देना गुरूजी ने बुलाया
मृत्यु की बात छुपा जाना |
भरत जी को अपशकुन हुए
भयंकर सपनें उनको आएं
दूत जो पहुंचे ,तुरत चल दिए
शत्रुघ्न भी साथ जाएं |
नगर पास पहुंचे देखें हैं
व्याकुल सब हैं नर नारी
कैकई ने सुना भरत आ गए
मन में उनके हर्ष भारी |
आरती लेकर गयीं द्वार पर
अंदर उनको ले आयीं
भरत पूछें पिता कहाँ हैं
कहाँ राम लक्ष्मण भाई |
गले से भरत को लगा कर बोलीं
मंथरा ने पूरी की मेरी आस
अयोध्या के अब तुम राजा हो
राम को भेज दिया वनवास |
पिता की मृत्यु सुन व्याकुल हुए
माता को बोले कड़वे वचन
तूने कुल का नाश किया है
मारा क्यों नहीं मुझे, होते ही जन्म |
इतने में सज धज करआई
वो कुबड़ी मंथरा वहां
शत्रुघ्न ने लात मारी उसे
खून बह रहा जहाँ तहाँ |
बाल पकड़कर खींचा उसको
आँखों से उसके आंसू बहे
रोक दिया शत्रुघ्न को भरत ने
दोनों कौशल्या के पास गए |
माँ के चरणों में सर रख कर
धिक्कार मुझे है, भरत कहें
मेरे कारण अनर्थ हुआ सब
सजा क्यों सीता राम सहें |
कोमल वचन बोलीं थी माता
दोष नहीं मैं दूँ किसी को
होनी को कौन टाल सका है
कहते हैं भाग्य इसी को |
अगले दिन मुनि वशिष्ठ आ गए
भरत को वो देते हैं ज्ञान
स्नान कराया राजा की देह को
संस्कार किया ,सहित सम्मान |