शबरी की आशा
शबरी की आशा
कब तक मोहि न राम मिलेंगे।
कब तक ना मन पुष्प खिलेंगे।
कब तक मोहि न राम मिलेंगे।।-2
मेरी अंखिया बरसों प्यासी।
पग से नजर हटे ना जरा सी।
मैं कुबरी कब राम मिलेंगे।
कब तक मोहि न राम मिलेंगे।।
पलक नहीं है मैंने फेरी।
देख रही मैं राह को तेरी।
कब कुटिया में फूल खिलेंगे।
कब तक मोहि न राम मिलेंगे।।
मन की शक्ति अब दग़ा दे रही।
आन की आहट जगा दे रही।
मेरे प्रभु कब दर्श मिलेंगे।
कब तक मोहि न राम मिलेंगे।।
तन मेरा मुरझाया हुआ है।
झूर्री दार काया हुआ है।
शबरी आशा राम मिलेंगे।
कब तक मोहि न राम मिलेंगे।।