विरह की बेला!!
विरह की बेला!!
बहुत याद आती विरह की वो बेला
उस अन्तिम मिलन में वो अश्कों का रेला
लवों पे हसीं पर दिलों में बवंडर
लरज़ती ज़ुबाँ से विदाई को कहना
लडखडाते कदम सिसके-सिसके से आँसू
जिन्हें देख आँसू भी ख़ुद रो रहे थे
बहुत याद आती विरह की वो बेला
उस अन्तिम मिलन में वो अश्कों का रेला !
अधूरे हुए एक-दूजे बिना हम
अधूरी कथा के अधूरे कथानक
धड़कनें रुकती-रुकती अधूरी सी साँसे
बिना आत्मा के दो ज़िंदा से बुत हम
उन गुज़रते हुए लम्हों को कैद करने
दो परवाने बिन लौ जले जा रहे थे
बहुत याद आती विरह की वो बेला
उस अन्तिम मिलन में वो अश्कों का रेला !
वो पगडंडियां भी सिकुड़ने लगीं थीं
वो घण्टे भी पल में गुज़रने लगे थे
वो सोची हुई अनकही सारी बातें
न जाने कहाँ भूल जाने लगीं थीं
वो तन्हाइयों के अंधेरे उजाले
हमें क्यों तभी से डराने लगे थे?
बहुत याद आती विरह की वो बेला
उस अन्तिम मिलन में वो अश्कों का रेला!
वो आती हुई रेलगाड़ी की धकधक
कटारों सी दिल पे हमारे चली थी
समय का ये चक्कर यहीं थम भी जाये
यही प्रार्थना दोनों दिल में बसी थी
उस अन्तिम मिलन में "विदा" शब्द कहकर
प्राण घायल हमारे हमीं ने किए थे
बहुत याद आती विरह की वो बेला
उस अन्तिम मिलन में वो अश्कों का रेला
बहुत याद आती विरह की वो बेला !
