प्रेम भाव की गंगा!!
प्रेम भाव की गंगा!!
प्रेम बसा तनमन में मेरे
प्रेम भाव की गंगा!
प्रेम गगन से धरती बांधे
करे क्षितिज की रचना!
प्रेम लहर और साहिल का है
मिलन-विरह की गाथा!
प्रेम फूल और ख़ुशबू जैसा
महकाये जग सारा!
प्रेम दिये और बाती जैसा
पूरक और कहीं ना!
प्रेम पतंगे और ज्योती का
जले बिना ना होता!
प्रेम राह राही का देखो
जीवन भर है चलता!
प्रेम नदी सागर से करती
सागर से भी गहरा!
प्रेम पाँव और घुंघरू का भी
छन-छन छनका रहता!
प्रेम पपीहे और स्वाति का
आकुल-आकुल होता!
प्रेम मिलन की उत्कंठा सा
व्याकुल-व्याकुल होता!
प्रेम नयन के नीर के जैसा
भावुक-भावुक होता!
प्रेम अनंत व्योम के जैसा
महाशून्य है होता!
प्रेम कृष्ण से मीरा जैसा
अनुरागी है होता!
प्रेम राधिका-कान्हा जैसा
पावन-पावन होता!
प्रेम राधिका-कान्हा जैसा
रोम-रोम में रमता !